Wednesday, 16 November 2011

"मेरे अल्फाज "

मेरे अल्फाज 
कृति - मोहित पाण्डेय"ओम" 

दिल में दर्द तो बहुत है,
बयाँ करने को अल्फाज नहीं मिलते|
गिले शिकवे तो बहुत है दिल में,
उन्हें सुनने वाले नहीं मिलते|
बयाँ करना तो चाह बहुत उनसे,
मगर वो शक्श हमारी नहीं सुनते|

उनकी गालियों में जाते थे,
अरमान हम उनसे मिलते|
अरमानो को हमारे जला डाला,
हम प्रेम पथिक आशाओं के सागार में रहते|

हमारी शक्ल दुस्वार थी उन्हें,
फिर भी उनके लौटने के सपने बुना करते|
मिलना न चाहते थे वो हमसे,
और प्रेमाग्नि में हम जलते रहते|

ये भी तो उन्हें मंजूर न था,
कि मनुहारी बगिया में हम भी खिलते|
दर्द तो ऐसा मिला उनसे,
दुनिया से दर्द छुपा नहीं सकते|
दिल से बर्खास्त किया उसने,
अब आँखों से झरने बहते|

अब मै क्या मांगू रब से,
उनके बिना जी भी नहीं सकते|
मरना तो हर क्षण चाहा हमने,
पर उस 'छवि'से जुदा हो नहीं सकते 
ये किसकी 'छवि' बसी दिल में,
जिसको खुद से जुदा हम कर नहीं सकते|

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