Tuesday, 15 November 2011

एक आस

एक आस 
कृति - मोहित पाण्डेय "ओम" 

आज भी दिल के मंदिर में ,
एक छवि संजों कर रखी है |
वो आएंगे जरूर ,
ये आस बना कर रखी है |

वो न भी आयें ,
तो दर्द न होगा |
अपनों से दर्द पाने की,
हमने आदत सी बना रखी है |

उन्हें कभी भी भूल पाना तो ,
मेरे लिए मुमकिन न होगा |
इसीलिए तो खुद की खातिर ,
हमने अपनी कब्र सजा रखी है |

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