एक आस
कृति - मोहित पाण्डेय "ओम"
आज भी दिल के मंदिर में ,
एक छवि संजों कर रखी है |
वो आएंगे जरूर ,
ये आस बना कर रखी है |
वो न भी आयें ,
तो दर्द न होगा |
अपनों से दर्द पाने की,
हमने आदत सी बना रखी है |
उन्हें कभी भी भूल पाना तो ,
मेरे लिए मुमकिन न होगा |
इसीलिए तो खुद की खातिर ,
हमने अपनी कब्र सजा रखी है |
कृति - मोहित पाण्डेय "ओम"
आज भी दिल के मंदिर में ,
एक छवि संजों कर रखी है |
वो आएंगे जरूर ,
ये आस बना कर रखी है |
वो न भी आयें ,
तो दर्द न होगा |
अपनों से दर्द पाने की,
हमने आदत सी बना रखी है |
उन्हें कभी भी भूल पाना तो ,
मेरे लिए मुमकिन न होगा |
इसीलिए तो खुद की खातिर ,
हमने अपनी कब्र सजा रखी है |
No comments:
Post a Comment