"बसंत की व्यथा " कृति : रविशंकर गुप्ता अलविदा बसंत ,देखो पतझड़ है आया
है नहीं अकेला ,संग किसी को ये लाया
ठण्ड और हवाओं की टोली संग लाया ,
हरे भरे वृक्षों को पियरी ओढाया |
अलविदा बसंत ,देखो पतझड़ है आया
परिवर्तन की बयार संग है लाया
दुखभरी घटाओं की कल्मिया भी लाया
विरहनी के आंसुओं की बरसात संग लाया
अलविदा बसंत ,देखो पतझड़ है आया |
पर बसंत डर नहीं , तू मन ही मन में मर नहीं
ये अंत सास्वत है नहीं ,आरम्भ नए युग का है
बहार फिर से आएगी ,लबों पे हंसी छाएगी
धैर्यवान बन जरा ,मेरुदंड सा तन जरा
कर जरा कठोर तप, रातें केवल एक जप
निराश ना मै होऊंगा , अटल चलूँगा मार्ग पर
कभी तो लहलहाएगी वल्लरी वो जीत की
धरा ये गुनगुनाएगी, बसंत ऋतू फिर से आएगी ||
है नहीं अकेला ,संग किसी को ये लाया
ठण्ड और हवाओं की टोली संग लाया ,
हरे भरे वृक्षों को पियरी ओढाया |
अलविदा बसंत ,देखो पतझड़ है आया
परिवर्तन की बयार संग है लाया
दुखभरी घटाओं की कल्मिया भी लाया
विरहनी के आंसुओं की बरसात संग लाया
अलविदा बसंत ,देखो पतझड़ है आया |
पर बसंत डर नहीं , तू मन ही मन में मर नहीं
ये अंत सास्वत है नहीं ,आरम्भ नए युग का है
बहार फिर से आएगी ,लबों पे हंसी छाएगी
धैर्यवान बन जरा ,मेरुदंड सा तन जरा
कर जरा कठोर तप, रातें केवल एक जप
निराश ना मै होऊंगा , अटल चलूँगा मार्ग पर
कभी तो लहलहाएगी वल्लरी वो जीत की
धरा ये गुनगुनाएगी, बसंत ऋतू फिर से आएगी ||
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