Monday, 14 November 2011

हाल-ऐ-दिल

  हाल-ऐ-दिल 
  कृति - मोहित पाण्डेय "ओम"    


उन्हें पाने की हसरत थी दिल में ,
पर वो भी आज गवां बैठे |
हमने उन्हें अपना समझा था ,
पर वो गैर समझ बैठे |
इतने भी बुरे न थे हम ,
जितना आप समझ बैठे |

दुनिया से दर्द छुपा रखा था ,
प्रेमाश्रु जो आज निकल बैठे |
आये थे वो यादें दफ़नाने ,
पर खुद को दफ़न हम कर बैठे |

सोचा था साथ चलेंगे,
भवसागर की कश्ती में,
मंझधार में उसने छोड़ दिया,
हम अपनी नांव डूबा बैठे |

अपने जीवन का हर एक पल,
उनके नाम जो हम कर बैठे |
उनसे मिलने की आस थी दिल में ,
वो भी आज जला  बैठे |

जीने की इच्छा थी मन में ,
वो भी आज बुझा बैठे |
प्रेम-दर्द की इन गलियों में ,
अपना सर्वस्व लुटा बैठे |

उस सुन्दर चंचल 'छवि' की खातिर,
क्या से क्या खुद को बना बैठे |
क्या खूब करम तेरा मौला ,
क्या हाल-ऐ-दिल बना बैठे |

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