Friday 17 August 2012

::मदिरा-मय मस्त मगन बूंदे:: एक प्रेमी का मदिरा से वार्तालाप


कृति -- मोहित पाण्डेय"ओम "

इस रचना में मैंने एक प्रेमी और मदिरा के बीच हुए वार्तालाप को पिरोया
है| जब एक प्रेमिका अपने प्रेमी को
अपनी सहेली की हाथो ये संदेश भेजती है की अब उन दोनों के बीच सब कुछ खत्म
हो गया है,उसे अब उसकी जरुरत नहीं रही क्यूकि उससे अच्छा एक रिश्ता उसके
लिए आया है| वो उसे भूल जाये|
ऐसा पढकर उसका पूरा तन बदन सुन्न हो गया, वो खो गया उन पुरानी यादो में
जिनमे उन दोनो ने कभी साथ निभाने और संग जीने-मरने कि कसमें खायी थी,
आखिर एक पल में वो सारी कसमें झूठी वो गयी|
क्या उसका प्यार एक फरेब था?
पुरानी यादो की हिलोरो को अपने जेहन में समेटे हुए वो मैखाने की तरफ चल
पड़ता है| साकी से जाम लाने के लिए कहता है|
"साकी अब तो मान ले, या मनवा कि बात|
जी भर जाम पिलाय दे, जागूँ पूरी रात || "
साकी ने जाम भरकर रख दिया है, अब मदिरा और उसका वार्तालाप शुरू होता है|

 
ये कैसा नशा मुझ पर  छाया,
 जो न पिया अपने अधरों से |
 होश-हवाश सुध-बुध खो बैठे,
 इस मधुर पान की प्याली से||१ 

   धूम्रपान  और  मधपान  हम, 
 सुनते   आये   थे   कानो  से |
 छलक रही प्याली मदिरा की,
 हमने  न  लगाया  अधरों से ||२

 फिर  भी कैसा  नशा हुआ  है,
 हुए  आज  हम  मतवारे  से |
 मदिरा-मय मस्त मगन बूंदे,
 करती  है निवेदन अधरों से ||३

  प्यारे खुद को   सिंचित कर ले,
प्यारी  मदिरा  की  सरिता से |
अपने गमो को कर दे प्रवाहित,
चंचल   मतवाली   लहरों   से ||४

ये जो नशा है तुम पर छाया,
पाया   तुमने   हरजाई   से |
वफ़ा  के  बदले   पाया  क्या,
तू  तड़प  उठा  बेवफाई  से ||५ 

                                                       बस आज तू मुझको अपना बना ले,
हर   लूँगी   व्यथा   एक  प्याली  से |
साथ     न    तेरा     मैं       छोडूँगी ,
वादा है रक्त-चमक मद-छलको से||६

मदिरा-मय मस्त मगन बूंदे,
करती है  निवेदन  अधरों से||

                                                          साथ   में   लेकर   अपने   चलना,
खेलेंगे    चिता    की    लपटों  से |
 दिल की 'छवि' में मुझको बसा ले,
 भर   दूंगी   दमन   खुशियों   से ||७

सुनकर दिल ने कड़क लगाई,
रिश्ता   है   तेरा   मैखाने   से|
दिल  न  लगाना  तुम  हमसे,
हम      दीवाने     है    उसके ||८ 

                                                              दिल में तो वो 'छवि' बसी है,
जगह   न   तू   ले   पायेगी |
 जी-जान से   कोशिश करले, 
  तू न भ्रमित हमें कर पायेगी||९


वो      अमृत     का     सागर    है,
विष   से   है   भरी   तेरी   प्याली|
वो पूनम के निशा सी उज्जवल है,
तू   मावस   की घोर   घटा  काली||१० 

                                                            तू  रक्त-तप्त डूबे   सूरज सी,
वो   उगते   भानु   की   लाली |
 गर  तू   दुःख   को  मिटाती  है,
 खुशियों  से भरी  वो हरियाली||११

माना की  खफा है वो  हमसे,
दूर   न  ज्यादा   रह   पाएंगे|
दौड़े    आएंगे    एक     दिन,
फिर  दिल  से हमें  लगाएंगे ||१२ 

                                                              उनकी अनुपस्थति में हम,
 सौतन से दिल न  लगाएंगे|
ऐसा अधरम  करके    हम, 
       खुद  की  नजरों में गिर जायेंगे||१३

प्यारी   मोहक    मन-मादक,
मदिरा  ने सुने जब प्रत्युत्तर|
सभी    यहाँ    दीवाने    उसके,
आँखों में सभी की मद-लाली||१४ 

                                                            ये कैसा  शख्स यहा पर आया,
क्रोध से  रक्तिम मद  प्याली|
तीक्ष्ण  नयन  अरु   मंदहास ,
कर्कश ध्वनि में मदिरा बोली||१५

तू  कितने भी  अश्रु  बहा ले,
याद  उसे  न  अब  आयेगी |
जीवन भर तू आस  लगा ले,
वो  न  वापस  अब आयेगी ||१६ 

ऐसी     उम्मीद      तुझे     न    थी,
वो दिल के इतने टुकड़े कर डालेगी|
दामन   थाम   किसी   जालिम  का,
जला-जला       तुझको      मारेगी ||१७

प्यार    के   सागर  में      तुमने,
गोते       बहुत       लगाएँ     थे |
जिन-जिन  को  अपना  समझा,
सब  दिल में शोले भरने आए थें||१८ 

कैसा   जहर    उसने    दे    डाला,
आँखों से अब तक निकल रहा है |
याद     उसे     कर-करके     क्यों,
हर   पल  खुद  को  जला  रहा है ||१९

दिल के दर्पण में देखो तो,
उसकी 'छवि' ही प्रतिबिंबित है |
मन-मानस में जो फूल खिले है,
सब मेरे नयनों से सिंचित है ||२० 

                                                            हमने किसी का क्या बिगाड़ा,
                                                            ये कैसी सजा अब मिल रही है |
                                                             जिसने हमारा हाथ थामा, 
                                                             अब वो रेत बनकर दूर हमसे हो रही है ||२१

मै कैसे तुमको खुद में बसा लूँ,
कैसे तुम्हे अपना बना लूँ |
इस दिल में जब चिंगारी उठी है,
कैसे अब उसको बुझा दूँ ||२२ 

                                                             मै नागमणि था, अब मणि 
                                                             क्यूँ दूर जाना चाहती है |
                                                             निस्तेज विषधर को अभी भी,
                                                             क्यूँ तू सोमरस पिलाना चाहती है ||२३ 




मदिरा-मय मस्त मगन बूंदे,
करती है निवेदन अधरों से|
................शेष जल्द ही ..

Thursday 16 August 2012

भारत माता की पुकार

कृति 'जीतेन्द्र गुप्ता '
बेकारी के आलम में ,लगता है हम भी खो जाएँ
रहने दें दुनिया जैसी है, दुनिया से बेसुध हो जाएँ |
बड़े कंटक हैं हर पग -पग में, इस जग सुधार के मारग पर
बड़े संकट हैं इस भारत में, हर दिल में बसा है भ्रष्टाचार
खड़े विषधर  है हर चौखट पर, कह रहे हैं वो ये पुकार पुकार
हम भले जगत से मिट जाएँ, मिटने ना देंगे भ्रष्टाचार ||
कहती है भारत माँ प्यारी, तुम हो मेरे कैसे सपूत !
जो बेच रहे हो खुद माँ को, अब तो सुधारों काले कपूत|
प्रण लो प्यारों अब इसी वक्त, खोया गौरव तुम लाओगे
बिलख रही है माँ प्यारी, इसे भ्रष्टाचार मुक्त कराओगे
यह ही है जननी हम सबकी, इसे जगद्गुरु तुम बनाओगे||

Tuesday 14 August 2012

"ये दिल काँच का टूटा"

कृति - मोहित पाण्डेय"ओम"

इतना टूटा हूँ मैं , न अब कोई तोड़ पायेगा |
ये दिल काँच का टूटा, जिसे न कोई जोड़ पायेगा ||
कितनी भी कोशिशें, कोई भी अब तो कर ले|
बर्बाद रास्तों से हमें, न कोई मोड पायेगा ||

हमनें कभी न सोचा, ऐसा भी वक़्त आयेगा |
जो मुझको अपना कहता था, गैरों का हो जायेगा ||
कितनी बड़ी थी साजिश, जिसे हम समझ न पायें||
ये जो तूफां है मेरे दिल में, यें कही कहर ढाएगा||

मेरा दिल तो जल रहा है, वो यादों में कभी जलेगा |
जिन्दा था अब तलक मै, अब कोई मारने को आयेगा ||
सब लोग कल तो आना, मातम मनेगा मेरा |
मेरी मौत पे वो हंसकर, गैरो के संग जश्न मनाएगा ||

इतना टूटा हूँ मैं , न अब कोई तोड़ पायेगा |
ये दिल काँच का टूटा, जिसे न कोई जोड़ पायेगा ||

Monday 6 August 2012

“निवेदन”

कृति- जीतेंद्र गुप्ता


एक छोटी सी बच्ची देखी

भोली सी उसकी सूरत थी

आँखों में उसके सपने थे

लगते जो उसके अपने थे

घर में सबकी दुलारी थी

लगती सबको प्यारी थी ||

पर उससे रब रुठ गया
उसका सबकुछ लूट गया

एक हवा का झोंका आया

माँ बाप का दामन छूट गया ||

फिर से उस बच्ची को देखा

मलिन सी उसकी सूरत थी

ना ही आँखों में सपने थे

ना कोई उसके कोई अपने थे ||

कौन उसे अब अपनाएगा

उसका अपना बन पाएगा |

मेरी एक अपील है भाई

दिल से जानो एक सच्चाई

जिन्हें नही पैसे का लोभ

ऐसे दुनिया में कम लोग

उनसे जीतेन्द्र का निवेदन है भाई

ब्याह लाओ ऐसी लुगाई

जिसके नहीं  है बाप - मताई ||

Saturday 4 August 2012

हाइकु, लिखने की एक कोशिश

कृति- मोहित पाण्डेय"ओम"

१. शीशा तोड़ दे ...
ये उनकी अदा है...
जख्म देने की ....


२. तेज धूप है...
सूरज जवान है....
फिर बारिश ....

३. रो रहा होगा..
दिल टूटने पर ...
ये आसमान ....


४. दंगा फसाद...
इंसानियत मरी
नेता का काम .....

५. तू डर गया?
बाजू में दम नहीं ?
है शिकश्त दे....

Thursday 2 August 2012

"हँसने की कोशिश करते है"

कृति -- मोहित पाण्डेय"ओम"


गम के सागर में डूबे रहते है,
फिर भी हँसने की कोशिश करते है|
ये जमाना अगर हमसे रूठे भी तो,
हम तो अपने ही जलवे में रहते है ||

उनको नफरत है हमसे तो हम क्या करे,
हम तो अब भी मोहब्बत करते है |
कोई पागल कहे, आवारा कहे,
उनकी गलियों में जाया करते है||

तुम दीवानों की बातें मत करना,
वो तो मर के भी जिन्दा रहते है|
कभी उसने हमें अपना माना था,
हम तो अपनों को दिल में रखते है||

है वो पागल जो गैरो पे मरते है,
हम तो अपनों कि खातिर जीते है|
मेरी आँखों में आँसू रहते है,
फिर भी हँसने की कोशिश करते है||
गम के सागर में डूबे रहते है ...........