Wednesday 25 April 2012

"अपना बना लीजिए"

कृति-- मोहित पाण्डेय "ओम"

अपनी नजरों में हमको बसा लीजिए,
हमको इतनी  बड़ी अब सजा दीजिए |
सब  दीवाने  तुम्हारे है  तो  क्या  हुआ,
अब तो हमको भी अपना बना लीजिए||

अपने    चेहरे   से   घूँघट   हटा   दीजिए,
इन काली घटाओं में खुद को समां लीजिए|
इश्क   में   हम     बेहोश  तो     क्या   हुआ.
अपने     होंठों  से    मदिरा   पिला दीजिए ||

इन  तीखी  निगाहों  से  न   क़त्ल कीजिये,
हमसे करके मुहब्बत अपना बना लीजिए|
तेरे  इश्क  में बदनाम  हुए  तो क्या  हुआ,
अपनी   नजरों   में   हमको  बसा  लीजिए|
अपने    चेहरे   से  घूँघट   हटा     दीजिए  ||

Wednesday 18 April 2012

ये दिल चाहता है

        
कृति - जीतेन्द्र गुप्ता

"तेरी झील सी आँखों में डूब जाने को दिल चाहता है
तेरी लहराती जुल्फों में खुद को छिपाने को दिल चाहता है
"
खोए रहते है तेरी ही यादों में 
न होश में आने को दिल चाहता है |
तेरी ही खुमारी छाई है  आठों पहर और
 जहान को भुलाने को द्दिल चाहता है|
दुनिया जहान की जितनी भी खुशियाँ है
वो तुझपर लुटाने को दिल चाहता है |
भूल गए थे रास्ता कालेज के आने का
तेरे लिए कालेज आने को दिल चाहता है|
भूल गए थे हम किताबें क्या होती है
अब कुछ कर दिखाने को दिल चाहता है |
हर सफल इन्सान के पीछे एक नारी होती है
वो तुझको बनाने को दिल चाहता है |
तेरी ही सूरत है मंदिर की मूरत में
तुझे खुदा बनाने को दिल चाहता है |
नही जानते हम ये मोह है या प्यार है
सब तुझपर लुटाने को दिल चाहता है||

Sunday 15 April 2012

"उन्हें ना रही अब मुह्हब्बत"

कृति- मोहित पाण्डेय"ओम "

उन्हें ना रही अब हमसे मुहब्बत,
उन्होंने कहा अब हमें भूल जाओ |
उन्हें ना रही अब हमारी जरुरत,
उन्होंने कहा अब हमें भूल जाओ |

इंतजार कभी अब मत करना,
हमारी बीती दिल्लगी भूल जाओ |
पहले तो दिल में बसाया था उसने,
मगर अब कहा ये शहर छोड़ जाओ |

उन्हें ना रही अब हमसे मुहब्बत,
उन्होंने कहा अब हमें भूल जाओ |
नादान    दिल  ने     उनसे कहा,
पहले  हमारी  खफा   तो बताओ ||

नासमझी   से गर   भूल हो  गयी  हो,
तो इतनी बड़ी अब सजा मत  सुनाओ|
मर   भी  ना  पाएंगे   तेरे   हम  बिन,
जिन्दा दफन कर ना हमको   सताओ ||

उन्हें ना रही अब हमसे मुहब्बत,
उन्होंने कहा अब हमें भूल जाओ ||


"इंजीनियर्स"


कृति --- जीतेंद्र गुप्ता

जब भी मौका हमको मिलता
हम ताश खेलते हैं
जब भी मौका हमको मिलता
दोस्तों को पेलते है |
मेश के खाने के भूत
हमको भी सताते हैं
फिर भी कॉलेज के 4 साल
अनमोल बनाते हैं |
दिन में चाहे कुछ ना करें
पर nightout मारते हैं
exams के time पर हम
knockout जागते हैं |
हम engineering student हैं
मस्ती में झूमते हैं
और भविष्य के सुनहरे सपने
हमारी आँखों में झूमते हैं|

Saturday 7 April 2012

"अम्मा"

कृति  -- मंटू कुमार

नज़र में रहती हो, पर नज़र नहीं आती अम्मा|
कहने को तो साथ है मेरे,पर अपनापन नहीं रहा अम्मा|
पहले एक-एक पल में थे कई जीवन|
अब जीवन में ढूढे एक पल,तेरे बिन अम्मा |
हम खुश रहकर मुस्काते थे,हमें देख मुस्काती थी  अम्मा |
ख्वाहिश नहीं रही अब पाने की कुछ|
तुम्हारी यादें ही काफी है अकेले में रोने के लिए अम्मा |
तुम्हारा न होना भी,होने का अहसास करा जाती है अम्मा|
उस जहान में तुम चली गई, हमें बुलाओगी कब अम्मा |
तुमने थे दिखाएँ जो सपने,बस उन्ही की खातिर जी रहे है अम्मा ||

Sunday 1 April 2012

"उलझन मंडप पे"

कृति -- मोहित पाण्डेय "ओम"

मेरे दिल में यारो एक उलझन बड़ी है |
न चाहा था हमने फिर भी मुसीबत खड़ी है...|
मुहब्बत थी जिससे हमको वो तो नहीं है|
वरमाला लिए एक अनजानी सी सूरत खड़ी  है|

रोका था बहुत सबको हम ये शादी न करेंगे|
अपनी आजादी को हम कुर्बान न करेंगे|
जो सामने है मेरे वो किसी की चाहत रही होगी|
उस शख्स को जख्म दे,खुद के जख्म न भरेंगे|

हम न जानते पहचानते दिल दे भी तो कैसे दे|
जिंदगी भर के साथ का वादा दे भी तो कैसे दे .
हम तो यहाँ मरते है हर पल याद में उसकी|
अपना बना उसे,पराया बन के धोखा, दे भी तो कैसे दे|