Tuesday 27 December 2011

"मन-मकरंद"


"मन-मकरंद"
कृति - मोहित पाण्डेय "ओम" 
         (Mohit Pandey)


ऐ वो खुदा तू सुन ले जरा,
आज शिकायत भारी है|
क्या हाल बना रखा अपना,
ये कैसी मति हमारी है|
दोष क्या है मेरे माली,
तेरी ही तो फुलवारी है|
गर फूल कली वो तेरी है,
तो मै भी तेरा गैर नहीं|

चंचल चितवन नयन सुलोचन,
मधु भीनी वो पुष्प कली|
मधुपान मगन मै प्यासे अधरों से,
सीने में किसी के जलन जली|
अधिकार जताता रौद्र रूप वह,
उसकी है यह पुष्प कली|
कैद किया अपनी मुट्ठी में,
फिर वक्तव्य कहे कुछ अनजाने|

ऐ मकरंद यह मत आना,
कईयों ने जाने वारी है|
हतप्रभ सा हुआ वह मानव,
सुनकर मेरा प्रत्युत्तर
अमर प्रेम में मर बैठे हम,
चर्चा जगत विचारी है|
सुनते ही मसला उसने,
जान इश्क में वारी है|

 
ऐ वो खुदा तू सुन ले जरा,
आज शिकायत भारी है|
तू कहता मै मकरंद नहीं,
गर मै मधु निषेध करूँ|
दुनिया कहती है मतवाला,
गर मै मधुपान करूँ|
अब तू ही बता मेरे मौला,
क्या मै कर्त्तव्य विहीन मरूँ|

तू तो सबका मालिक है,
बस एक करम मेरा कर दे|
मेरे जीवन की हर खुशियाँ,
उस पुष्प कली 'छवि' में भर दे|

Monday 26 December 2011

अनुशाशन या तानाशाही

अनुशाशन  या तानाशाही 

लेखक- रोशन पाण्डेय


कल रात मैंने रा-वन फिल्म देखी जिसकी वजह से सुबह देर तक सोता रहा| घडी में देखा तो सुबह के ८ बजे हुए थे फ़ौरन मैं बिस्तर से उठा,बाहर देखा तो सूर्य की किरणे रक्त-तप्त होती जा रही थी| जल्दी से तैयार होकर मैंने तुरंत अपनी साईकिल उठाई और स्कूल चल पड़ा| मेरे चाचू हमेशा से ही मुझे आत्म-विश्वास और निडर होने की बात करते रहते थे क्यू कि मैं थोडा सा दब्बू किस्म का था| मैं गेट से होकर साईकिल स्टैंड की तरफ बढ़ रहा था,तभी मैंने देखा की मेरा एक सहपाठी गैलरी की पट्टी के पास खड़ा हुआ था| उसका चेहरा क्षोभ से भरा हुआ था| हमारी कक्षा लगने में सिर्फ २ मिनट बाकी थे| मैं जल्दी से दौडकर अपनी कक्षा में गया| मेरा मन अध्ययन में नहीं लग रहा था| बड़ी मुश्किल से ३ घंटे बीते|
चौथे घंटे में मैं चोरी से निकल कर कक्षा से बाहर आ गया| उसे ढूढते हुए काफी वक्त निकल गया,बड़ी मशक्कत के बाद वह मिला| वह अब भी उदास था उसके चेहरे पर एक तरह की उदासी छाई हुयी थी| मैं उसके पास गया एवं उसकी उदासी के बारे में पूछा,अब भी वह शांत बैठा हुआ था| मैंने दुबारा वही प्रश्न किया तो उसने बताया कि यहा के टीचर बच्चो की भावनाओ को नहीं समझते है,उन्हें तो बस अनुशाशन चाहिए| कल मैंने टीचर से एक पज्ज्ल प्रश्न किया तो टीचर ने ये जवाब दिया कि तुम्हे अपने कोर्से से प्रश्न पूछना चाहिए| मैंने बिना सोचे बिचारे फ़ौरन कहा कि क्या आपको आता नहीं ?
उनसे मेरी इसी बात पर बहस हो गयी और उन्होंने मुझे पीट दिया| वह बार-बार नकारात्मक सोच में ही जवाब देते रहे| और फिर उस टीचर ने मुझे क्लास से निष्काषित कर दिया| जब यही बात मेरे बापू के पास पहुची तो उन्होंने कहा कि तुम्हे बड़ों से ऐसे बात नहीं करनी चाहिए| अब तो मेरे अंदर आग सी लग गयी थी| माता-पिता ने मुझको ही दोषी ठहराया,तबसे मैं अंदर ही अंदर घुंट रहा हू| फिर मैंने पूछा कि क्या ऐसी घटनाये पहले भी हो चुकी है|
उसने बताया हा पिछली साल एक सीधा एवं तीव्र दिमाग का लड़का था| उसने भी इसका विरोध किया था| टीचर ने उसे भरी क्लास में जलील किया एवं स्कूल से निकल दिया| तभी से यह के छात्र टीचरो के विरोध में खड़े होने का सहस नहीं कर पाते| मुझे तो यह कि चाहरदीवारी कैद खाने जैसा लगता है| जहा बच्चो के विचारों का तनिक भी महत्त्व नहीं दिया जाता| मुझे ऐसा विचारों वाला पहला विद्यार्थी मिला,मैं उससे बहुत प्रभावित हुआ| मैंने तुरंत ही शिक्षा मंत्री को यहाँ का हाल लिखकर बताया और साथ में लिखा कि तुरंत कार्यवाही हो|

आजकल के सभी स्कूलों में टीचर अपनी मनमानी करते है| उन्हें सबक सिखाने के लिए अन्ना से एक बिल पास करने के लिए कहूँगा|
"अनुशाशन विकाश कि प्रथम सीडी है लेकिन अनुशाशन का उद्देश्य भावों को ठेस पहुंचाना और विचारों को धूमिल करना नहीं है "

Sunday 25 December 2011

"जागृति"

"जागृति"
कृति - सत्येन्द्र पुरोहित

हालात इतने जटिल कहाँ
जो ना बदले वो हालात कहाँ
सांसो का जो बादल गरज रहा
वो न बरसे तो जिन्दा कहाँ

रगो में ऐसा तूफां ला दो
कम्पित शीत को ग्रीष्म बना दो
जहाँ शमशान सा हो प्रतीत
वही मुर्दों को आग लगा दो

"अजातशत्रु"

अजातशत्रु
(अटल जी के जन्म दिन पर समर्पित मेरी कुछ पंक्तियाँ)

कृति: मोहित पाण्डेय "ओम"
क्रिसमस उन्नीस चौबीस में,
सूर्य तेज अवतीर्ण हुआ|
माँ कृष्णा के अटल लाल से,
सारा भूमंडल उज्जवलित हुआ|
मस्तक की तेज अटल रेखा,
करती थी बयाँ उसकी किस्मत|
सच्चा देश का प्रहरी होगा,
दुश्मन भी होंगे नतमस्तक ||
पिता चाहते थे बैरिस्टर,
कानून अटल सर्वज्ञ हुआ|
अंग्रेजो के जोर जुल्म से,
देश प्रेम उद्भवित हुआ|
माँ भारती की करुण क्रंदन से,
मन में क्षोभ विक्षोभ हुआ|
सर्वस्व सुखो को तज कर,
'भारत छोडो अंग्रेजो' में सम्मिलित हुआ||
जाबांज अटल बलिदानों से,
भारत जब स्वतंत्र हुआ|
पूरा देश खुशी से झूमा,
फिर अटल खुशी से मगन हुआ|
राष्ट्र धर्मं और पांचजन्य का,
संपादन उसने कर डाला|
अमर आग और संकल्प काल,
कविताओ का सृजन कर डाला||
दुश्मन के घर लाहौर में जाकर,
'जंग न हो' का गान किया|
अपने दुश्मन की आँखों में भी,
आंसू लाने को मजबूर किया|
भारत का नायक बनकर,
भारत का उद्धार किया|
सर्व शिक्षा की नीव बनाकर,
ज्ञान दीप प्रज्वलित किया|
देश की खातिर अमर त्याग,
गुण गान हमेशा करता हूँ|
"अजातशत्रु" अटल जी को,
दिल से वंदन अभिनन्दन करता हू ||

Saturday 24 December 2011

"शिक्षा का अधिकार, कहाँ ???"

               "शिक्षा का अधिकार, कहाँ ???"
     कृति : आलोक कुमार सिंह
आज सुबह ही देखा था उसको एक ढाबे पे बर्तन धोते हुए ,
जब मै ४ कपडे पहना था , देखा था  उसे नंगे बदन इधर उधर जाते  हुए ,
जब मै बिस्तर  से निकलना भी ना चाहू , देखा था उसे  ठण्ड में सिकुडते हुए ,
जब मै चाहू कुछ गरमा गरम खाना,देखा  उसे  दूसरों का खाना बनाते हुए |

आज सुबह ही देखा था उसे  बच्चों को  स्कूल-बस में चढ़ाते हुए ,
इतनी  ठण्ड में देखा उसे  बस की गेट पर कपकपाते  हुए ,
 फिर भी थोड़ी सी गलती पर  देखा था ड्राईवर को उसपे चिल्लाते हुए ,
मैंने देखा  एक बच्चे को ही उन बच्चों को बस में चढ़ाते हुए |

आज सुबह ही देखा था उसको  कैंटीन में पराठे बनाते  हुए
कुछ देर बाद देखा था उसे कुछ टीचर्स को चाय पकडाते हुए
मैंने देखा था ठण्ड की वजह से उसे कुछ बर्तन गिराते  हुए 
फिर मैंने  सुना था विजोय दा  को उसको गरियाते हुए |

आज सुबह ही देखा था उसको सगड़ी चलाते हुए
मैंने देखा था सगड़ी के  हैंडल को इधर उधर जाते हुए
फिर  देखा था उसे खीचकर हैंडल सगड़ी को सीधा चलाते हुए 
जब हम होते हैं एक गट्ठर उठाने में असमर्थ उसे देखा था ५० किलो भार उठाते हुए
फिर देखा था उसे २० रुपये के लिए  गिडगिडाते हुए |

आज सुबह ही मैंने पाया खुद को सबसे एक प्रश्न करते हुए,
 की कहाँ  है शिक्षा का अधिकार और कहाँ  है बाल श्रम एक कानूनन जुर्म ??

कृति : http://www.facebook.com/onlyalok08

Wednesday 21 December 2011

" अरमान "

               " अरमान "
कृति :जीतेन्द्र गुप्ता    

बहुत अरमान संजोये है जिन्हें अब पूरा करना है ,
कर्तव्यों की कसौटी पर अब खरा उतरना है
माँ बाप के चरणों में खुशियों का झरना है ,
बहुत जिद कर चुके हम अब उनकी जिद को पूरा करना है,
बहुत अरमान संजोये है ,जिन्हें अब पूरा करना है |

खुद से किये कुछ वादे है और कुछ अपनों के सपने है ,
उन कसमो वादों सपनो में जीवन के रंग को भरना है,
मानवता की कुछ परिभाषाएं है और देश की कुछ आशाएं है, 
अब देश  की खातिर ही अपना ये जीवन बलिदान करना है  ,
बहुत अरमान संजोये है जिन्हें अब पूरा करना है |

गम के आंधी तूफानों में जो बिछड़ गए है खुशियों से,
जिनके नही है अपने कोई या होकर भी हैं गैरों से ,
उन नादान फरिस्तों के दामन में खुशियाँ भरना है,
बेनूर हो चुकी नजरों में खुशियों का उजाला करना है,
बहुत अरमान संजोये है जिन्हें अब पूरा करना है|

 ये सीख लो चिराग से जलकर रौशनी करना है ,
जीवन के उन  मूल्यों पर कुर्बान ये जीवन करना है,
खुद के लिए तो बहुत जिए अब दूसरों के लिए मारना है,
कर्तव्यों की कसौटी पर अब खरा उतरना है ,
बहुत अरमान संजोये है जिन्हें अब पूरा करना है|

Tuesday 20 December 2011

मनभावन मौसम


"मनभावन मौसम"
कृति - रोशन पाण्डेय  

भोर हुई भानु ने ली अंगड़ाई,
जग जीवन में उमंग नयी छाई|
हुई भानु की सप्त रश्मियों की बौछार,
रोशन हुआ जग सारा संसार|

निर्मल स्वच्छ गगन में चिड़ियाँ,
कोलाहल या शायद मना रही थी खुशियाँ|
कोयल ने अपना मधुर राग सुनाया,
हारे को जीत भरी आशा का पाठ पढाया|

जैसे हजारो पद एक साथ चल रहे हो,
कमल कुमुदिनी से मंद हास कर रहे हो| 
भौरों की नई तान उमड़ी,
खेतों में हरियाली बिखरी|

प्रकृति का यह मनोहर रूप,
पीत आवरण  से ढकी धूप|
पतझड़ बीता बसंत आया,
मुझको यह मौसम बहुत भाया|