Wednesday 25 July 2012

भूले-बिसरे

मोहित पाण्डेय "ओम"

१.    जिंदगी को जिस तरह हमने जिया, 
       शायद ही कोई शक्सियत जी पायेगी |
       उनके होंठों से जाम हमने पिया ,
       हमें न अब कोई दूजी जाम भाएगी ||

       वो तो चले गए हमें मदहोश करके,
       मगर उनसे जुदाई और गम-ए-उल्फत में ये जान चली जायेगी|
       मगर अफ़सोस, तब ये मदहोशी हमेशा की हो जायेगी |
       गर फक्र है, कभी हमारी भी इश्क-ए-दास्ताँ इबारत पढ़ी जायेगी ||

२.    इतना मत सताओ हमें, हम तेरा शहर छोड़ जायेंगे |
       जान मांग कर के तो देख, तेरी ही चौखट पे दम तोड़ जायेंगे|
       दीवाने तो मरते ही है यहाँ, पर हम अपनी आशिकी की एक मिशाल छोड़ जायेंगे |
       फिर अपनी मोहब्बत का इजहार मत करना, क्यों कि कब्र में दफ़न हम दिल्लगी कर न पाएंगे 

३.    सोचा था मुहब्बत न करेंगे, क्यों कि इसमें दर्द-ए-सुरूर होता है|
       फिर दिल ने आवाज दी लगा ले दिल, बिना दिल्लगी के कौन यहाँ मशहूर होता है||

Thursday 5 July 2012

"जिंदगी अंगार की है, फिर भी तो हम जी रहे है"

कृति- मोहित पाण्डेय "ओम"

जिंदगी निष्ठुर है कितनी,
फिर भी तो हम जी रहे है |
अश्कों के सागर में डूबे,
आब-ए-तल्ख़ पी रहे है ||

उसने दिखाए थे जो सपने,
झूठ थे सब खल रहे है |
क्या निगाह थी उस हँसीं निगार की,
तसब्बुर में जिनके हम आजिज से हो रहे है||

कैसे बुझायें दिल की आतिश,
हर पल जो हम खुद जल रहे है |
अश्कों को अपने पी के खुद,
मन की आतिश बुझा रहे है||

कैसे भुलाएं वो कहानी,
जो जुबानी लिख रहे है |
प्रेम की ज्वाला थी तब,
अब तो हिम खुद बन रहे है ||

जिंदगी अंगार की है,
फिर भी तो हम जी रहे है||