कृति- “जीतेन्द्र गुप्ता”
वर्षों से खुलकर नहीं हंसा
पर सिसक सिसक रोया तो है
तसवीर तेरी दिल में रखकर
तेरे सपनों में खोया तो है
सच्चाई में तो मिली नही
पर सपनों में आई तो है
तेरी हर एक याद संजोकर
दिल में दफनाई तो है
जिन्दा रहते तो मिली नहीं
पर मुझको अब संतुष्टि ये है
मेरी लाश पर अश्क बहाने
देखो वो आई तो है.......