Thursday 22 November 2012

शहीदों को समर्पित एक कविता ...


एक दिन कलम ने आके चुपके से मुझसे ये राज खोला ,
कि रात को भगत सिंह ने सपने में आकर उससे बोला,

कहाँ गया वो मेरा इन्कलाब कहाँ गया वो बसंती चोला ?
कहाँ गया मेरा फेंका हुआ, मेरे बम का वो गोला ?

आत्मा ने भगत के आकर कहा , ये देख के हम बहुत शर्मिंदा हैं,
कि देश देखो आज जल रहा है,और जवान यहाँ अभी भी जिन्दा हैं ??

देख के वो रो पड़ा इस देश की अंधी जवानी ,
क्या हुआ इस देश को जहाँ खून बहा था जैसे हो पानी ,

खो गया लगता जवान आज जैसे शराब में ,
खो गया आदतों में उन्ही , जो आते हैं खराब में ,

कीमतें कितनी चुकाई थी हमने, ये तो सब ही जानते हैं
तो फिर इस देश को हम आज , क्यूँ नही अपना मानते हैं ?

देश के संसद पे आके वो फेंक के बम जाते हैं ,
और खुदगर्जी में हम सब उन्हें अपना मेहमां बनाते हैं ,

भूल गये हो क्या नारा तुम अब इन्कलाब का ???
जो पत्थरों के बदले में भी थमाते हो फुल तुम गुलाब का ?

मानने को मान लेता मानना गर होता उसे ,
जान लेता हमारे इरादे गर जानना होता उसे ,

आँखों में आंसू आ गया, देख के अब ये जमाना ,
लगता है आज बर्बाद अब , हमको अपना फांसी लगाना ,

ऐ जवां तुम जाग जाओ तुम्हे देश ये बचाना होगा ,
आज आजाद और भगत बन के तुम्हे ही आगे आना होगा

ऐ जवां तुम्हे नहीं खबर ,कि जब-जब चुप हम हो जाते हैं
देश के दुश्मन हमे तब-तब, नपुंसक कह- कह कर के बुलाते हैं,

उठो और लिख दो आज फिर से, कुछ और कहानियाँ ,
कह दो जिन्दा हैं अभी हम और सोयी हैं नही जवानियाँ,

गर लगी हो जवानी में, जंग, तो हमसे तुम ये बताओ ,
या खून में उबाल हो ना , तो भी बस हमसे सुनाओ,

एक बार फिर से हम इस मिटटी के लाल बन के आयंगे ,
एक बार इस देश को अपनों के ही गुलामी से हम बचायेंगे ,

नारा इन्कलाब का हम फिर से आज लगायेंगे ..
पर ये सवाल हम आप से फिर भी बार-बार दुहराएंगे,

कि आखिर कब तक ?? आखिर कब तक ?
इस देश के जवां कमजोर और बुझदिल कहलाते जायंगे.....
इसको बचाने खातिर कब, तक भगत सिंह और आजाद यहाँ पर आयंगे ???
 
Rajeev Kumar Pandey " Mahir "

Tuesday 20 November 2012

क्या तुमने ऐसा अधम कुकृत्य किया होता ???


कल शहर के राह  पर मैंने भीड़ देखा था ,
जहाँ एक नवजात कन्या को उसकी माँ ने फेंका था ,

मै बेबस था चुपचाप था बहुत परेशान था ,

मै उस नवजात की माँ की ममता पे बहुत हैरान था  , 


मै कुछ नही कह सकता था उस भीड़ से , क्युं कि मै भी एक इंसान था ,

पर क्या उस कुछ देर पहले जन्मी बच्ची  का नही कोई भगवान था ?? 


क्या उस माँ की कोख ने उस माँ को नही धिक्कारा होगा  ?

क्या उस नवजात की चीख ने उस माँ को नही पुकारा होगा ? 


आखिर क्यूँ जननी काली  से कलंकिनी  बन जाती है ? 

जन्मती है कोख से और फिर क्यूँ कूड़े पे फेंक आती है ? 


गर है ये एक पाप , तो क्यूँ माँ करती है उस पाप को ?

क्या शर्म नही आती उस बच्ची के कलंक कंस रूपी के बाप को ? 


बिलखते हैं, चीखते हैं मांगते हैं रो-रो कर भगवान से ,

जो की दूर हैं एक भी संतान से , 

  उस नवजात को मारने  की वजह बढती हुई दहेज तो नही ?
 कुछ बिकी हुई जमीरों के लिए लकड़ियों की कुर्सी मेज तो नही ?

कुछ बिके हुए समाज के सोच की  नग्नता का धधकता तेज तो नही ?

 इस नवजात की मौत की वजह  किसी के हवस की शिकार सेज तो नही ? 

बस एक बात पूछता हूँ उस समाज से , उस माँ से ,और उस भगवान से

क्यूँ खेलते हों मूक  निर्जीव सी नन्ही सी जान से  ?? 


आखिर क्यूँ मानवता पे यूँ गिरी है ये गाज ?

जिस माँ ने फेंका था उस नवजात को, उसी माँ से पूछना चाहता हूँ मै  आज ..  


क्या तुमने ऐसा अधम कुकृत्य किया होता ?

अगर तुम्हारी माँ ने भी तुम्हे अपने कोख से निकाल फेंक दिया होता ??????? 

Rajeev Kumar Pandey " Mahir "