Wednesday 7 March 2012

"उसके संग होली"

कृति- मोहित पाण्डेय

आया रंगों का त्यौहार, आओ प्रेम रंग में रंग जाये |
आया मीत-मिलन का वार, आओ रंगों में हम रंग जाये|
आया बसंत मनुहार, प्रियतम की बाँहों में खो जाये |
राग द्वेष सब वैर भुलाकर, आओ रंग अबीर लगाये |

बहुत हों गया भंगिया के बिन, आओ मिलकर भंग लगाये|
भंग नशे में याद वो आई, आओ अपनी व्यथा सुनाये|
कभी मनाते थे उसके संग, आज तुम्हारे संग मनाये|
आया रंगों का त्यौहार, आओ प्रेम रंग में रंग जाये |

जब सर्द हवाए मान को छूकर, प्रियतम का सन्देश सुनाती थी|
तन-मन रोमांचित हों यादों से, हर धड़कन बस उनका हाल बताती थी|
पिया मिलन के ख्वाबो में, ये होली की रुत जब आती थी |
सब तजकर पिया मिलन को, वो होली के दिन आती थी |

प्रेम रंग मन में भरकर, तिरछे नैनों से प्रणय निवेदन करती थी|
होता नयनों का मधुर मिलन,मन की मन से बाते होती थी|
सभी मगन रंगों के संग, लेकिन वो थोड़ी सकुचाती थी|
उसकी सखियाँ जब आकर, मुझसे होली खेला करती थी|

जलन भाव से क्रोधित हों, वो हमसे रूठा करती थी |
कितने अच्छे दिन थे वो , जब वो हमको जानू कहती थी |
बदल गया यारो उस दिन सब, जब उसको एक डोली लेने आई थी
खुश होकर वो ससुराल चली जब, उस दिन मेरी आँखे जी भर रोईं थी |

Monday 5 March 2012

मौत का फरमान

मेरे महबूब ने मौत का फरमान भेजा है,
हल्दी छिडककर खत में एक पैगाम भेजा है|
मेहंदी लगाई दूसरे की अपने हाथ में,
साकी के हाथ विष भरा एक जाम भेजा है |

अरमान थे हम उनकी मांग सजायेंगे,
हर हाल में उन्हें हम अपना बनायेंगे|
वो रुथ गए ऐसे कि हम मना न पाए,
उनकी खुशी कि खातिर जिंदगी तन्हाइयों में बिताएंगे|

. . mohit pandey"om"

“चाँद की चाँदनी नहीं देखी”

कृति – आकृति चौबे

कितने दिन हो गए,
हमने चाँद की चाँदनी नहीं देखी|
यू तो हर दिन के बाद रात होती है,
हर रोज चाँद भी दिखता था खिड़कियों से,
सारा जहाँ नहाता था उसकी चाँदनी में,
हर आशिक अपनी महबूबा को खोजता था उसमे,
हर माँ अपने लाड़ले को दिखाती थी अक्स उसका|
पर कितने दिन हो गए,
हमने चाँद की चाँदनी नहीं देखी|

आज अरसे बाद हमें भी दिखी चाँद की चाँदनी,
ये कैसा असर था हमपे की,
चाँद था पर चाँदनी नहीं|
सांसे थी पर जिंदगी नहीं,
एहसास था पर इकरार नहीं|
इंतजार था पर ऐतबार नहीं,
ये कैसा असर था हम पर की,
चाँद तो देखा मगर चाँद की चाँदनी नहीं देखी|

Friday 2 March 2012

पराई बेटी

बेटी क्यों पराई होती है ?
आखिर क्यों एक दिन उसकी, इस घर से विदाई होती है |
इस घर में ही तो वह, हँसती खिलती पलती है |
फिर क्यूँ उसको अपने घर में रहने कि मनाही होती है
आखिर बेटी ही क्यों पराई होती है?

जब मेरी प्यारी गुडिया, गुड़ियों से खेला करती है |
नासमझ यहाँ की रीतों को, न उनकी विदाई करती है |
फिर रोटी आती है,गले से चिपटकर कहती है |
अब्बा मुझको अपने से, दूर कभी भी मत करना |
अपनी प्यारी बेटी को, इस घर से बाहर मत करना |

---------mohit pandey"om"