मैंने देखा है अमावस में जूझते हुए चाँद को
और पूर्णिमा में उसे चमकते भी मैंने देखा है
मैंने देखा है धरती की सूखी दरारों को
और खेतों को सोना उगलते भी मैंने देखा है
मैंने देखा है चींटी को खाना जुटाते हुए
और उसे अनवरत चलते हुए भी मैंने देखा है
मैंने देखा है पतझड़ में सूखे हुए पेड़ों को
और सावन में उन्हें लहलहाते भी मैंने देखा है
मैंने देखा है इंसान की हर पल की जद्दोजेहद को
और उसके सपनो के महल साकार होते भी मैंने देखा है
अब चाहता हूँ देखना हर शख्स ये बोले
हार में भी सफलता का आगाज मैंने देखा है
आलोक सिंह|
और पूर्णिमा में उसे चमकते भी मैंने देखा है
मैंने देखा है धरती की सूखी दरारों को
और खेतों को सोना उगलते भी मैंने देखा है
मैंने देखा है चींटी को खाना जुटाते हुए
और उसे अनवरत चलते हुए भी मैंने देखा है
मैंने देखा है पतझड़ में सूखे हुए पेड़ों को
और सावन में उन्हें लहलहाते भी मैंने देखा है
मैंने देखा है इंसान की हर पल की जद्दोजेहद को
और उसके सपनो के महल साकार होते भी मैंने देखा है
अब चाहता हूँ देखना हर शख्स ये बोले
हार में भी सफलता का आगाज मैंने देखा है
आलोक सिंह|
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