Sunday, 20 November 2011

"यादों का बचपन"

"यादों का बचपन"
कृति - मोहित पाण्डेय "ओम"

वो बचपन की खुशियाँ, जवानी का गम |
रूठे है आज हमारे करम |
गए थे मनाने वहां पर उन्हें,
शायद मान जाये रूठे सनम |
पै देखा उन्होंने अनजान बनकर,
बेजान नजरों में सब कुछ भुलाकर |
उन्हें याद न था वो भूला ज़माना,
हमें याद है वो गुजरा जमाना |

रंगीन हाथों से रंग का लगाना,
हाथों से उनके फुलझड़ियाँ जलाना |
रातों में परियों की बातें सुनाना,
घुमड़ते बादल में 'छवि' को दिखाना |
मगर हम न भूलें वो प्यारा ज़माना ,
हमें याद है वो गुजरा ज़माना |
कदम्ब की कलियों को हाथों में देना,
सरसों पीत कलियों से केश सजाना |

आवाज देकर अकेले बुलाना,
चोरी से उनको मिठाई खिलाना |
मगर हम ना भूलें वो प्यारा जमाना,
उन्हें याद ना था वो भूला ज़माना |
बगिया में रंगीन तितलिया पकड़ना ,
खम्भे के पुल पर हाथों में हाथ लेना |
पकड्म खेल में बेतहाशा दौड़ना,
चाँद मेरा है कहके लड़ना झगड़ना |

पै उन्हें याद ना था वो बचपन का गाना|

गंगा की लहरों में गोतें लगाना,
मेले से लाकर चरखी चलाना |
बातों ही बातों में उनको रिझाना,
गर रूठ जाएँ तो मुश्किल मनाना  |
उनको ही सब कुछ माना था अपना,
बदल गएँ वो बदला ज़माना |
लगा आज मुश्किल है उनको मनाना,
खुशियों में भाया खुद का मातम मनाना |

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