Friday 10 February 2012

बेचैन दिल

दिल का कहा सुना था ,तभी तो ये बेचैनी होती है,
कौन कमबख्त होना चाहता था, अपनी दिलोजाँ से दूर|

दूर तो हुआ था उन सपनो को पूरा करने को, जिसे हमने साथ देखे थे,
सोचा न था की उन हसींन सपनो के बदले , आँखों की ये नमी मिलेगी|

अरे इन  आँखों की नमी को तो कोई भी सुखा देगा,
मगर इस दर्द भरे दिल में लगी आग को कौन बुझा पायेगा||

                                                                     -प्रेमराज

2 comments:

  1. बहुत बेहतरीन....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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