दिल का कहा सुना था ,तभी तो ये बेचैनी होती है,
कौन कमबख्त होना चाहता था, अपनी दिलोजाँ से दूर|
दूर तो हुआ था उन सपनो को पूरा करने को, जिसे हमने साथ देखे थे,
सोचा न था की उन हसींन सपनो के बदले , आँखों की ये नमी मिलेगी|
अरे इन आँखों की नमी को तो कोई भी सुखा देगा,
मगर इस दर्द भरे दिल में लगी आग को कौन बुझा पायेगा||
-प्रेमराज
कौन कमबख्त होना चाहता था, अपनी दिलोजाँ से दूर|
दूर तो हुआ था उन सपनो को पूरा करने को, जिसे हमने साथ देखे थे,
सोचा न था की उन हसींन सपनो के बदले , आँखों की ये नमी मिलेगी|
अरे इन आँखों की नमी को तो कोई भी सुखा देगा,
-प्रेमराज
bahut hi umda rachna
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।