तेरी झूठी नफरत की एहसास को भी वो प्यार समझता रहा,
तेरी उन मीठी गलियों को भी वो इश्क का जाम समझता रहा|
तेरी ठुकराने का अंदाज़ ही कुछ ऐसा था कि,
न चाहते हुए भी उसे तुम्हे बेवफा समझना पड़ा|
मगर ये कैसी बंदिश है, ये कैसी मजबूरी है,
कि मेरे प्यार की चिता जला किसी और के साथ बैठ,
तुझे अपना हाथ सेकना पड़ा|
शायद तुम से अच्छी तो चिता की वो लकड़ियाँ ही निकली,
जो इस दर्द भरे दिल के प्यार को जला न सकी|
लेकिन फिर भी तेरे इंतजार में ये दिल आज भी तडपता है|
अब तो इंतजार है उस जहाँ का, जब न वो अदालत तेरी होगी,
न वो शहर तेरा होगा सिर्फ इन्साफ की इबादत मेरी होगी||
प्रेमराज कुमार
तेरी उन मीठी गलियों को भी वो इश्क का जाम समझता रहा|
तेरी ठुकराने का अंदाज़ ही कुछ ऐसा था कि,
न चाहते हुए भी उसे तुम्हे बेवफा समझना पड़ा|
मगर ये कैसी बंदिश है, ये कैसी मजबूरी है,
कि मेरे प्यार की चिता जला किसी और के साथ बैठ,
तुझे अपना हाथ सेकना पड़ा|
शायद तुम से अच्छी तो चिता की वो लकड़ियाँ ही निकली,
जो इस दर्द भरे दिल के प्यार को जला न सकी|
लेकिन फिर भी तेरे इंतजार में ये दिल आज भी तडपता है|
अब तो इंतजार है उस जहाँ का, जब न वो अदालत तेरी होगी,
न वो शहर तेरा होगा सिर्फ इन्साफ की इबादत मेरी होगी||
प्रेमराज कुमार
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