Thursday, 9 February 2012

दिल की तड़प

तेरी झूठी नफरत की एहसास को भी वो प्यार समझता रहा,   
तेरी उन मीठी गलियों को भी वो इश्क का जाम समझता रहा|

तेरी ठुकराने का अंदाज़ ही कुछ ऐसा था कि,
न चाहते हुए भी उसे तुम्हे बेवफा समझना पड़ा|
मगर ये कैसी बंदिश है, ये कैसी मजबूरी है,
कि मेरे प्यार की  चिता जला किसी और के साथ बैठ,
तुझे अपना हाथ सेकना पड़ा|

शायद तुम से अच्छी तो चिता की वो लकड़ियाँ ही निकली,
जो इस दर्द भरे दिल के प्यार को जला न सकी|

लेकिन फिर भी तेरे इंतजार में ये दिल आज  भी तडपता  है|
अब तो इंतजार है उस जहाँ  का, जब न वो अदालत तेरी होगी,
न वो शहर तेरा होगा सिर्फ इन्साफ की इबादत मेरी होगी||
                                                                        प्रेमराज कुमार

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