Saturday, 25 February 2012

::चंद दोहे::

कृति :: मोहित पाण्डेय"ओम"
१. प्रेम यहाँ सबसे बड़ा,  सबसे  रखियों  प्रेम |
प्रेम में शबरी गृह गए, तज कर राज के नेम ||
२. प्रेम बिना इस जगत में,मोसे रहा न जाय |
प्रेम सुधा कि कुछ बूंदे, ओम को देउ पिलाय ||
३. कलम लेखनी शाश्वत, दुर्लभ  साँचो मीत |
मीत गयौ कुछ न रहेउ, बची कलम की प्रीत ||
४. साकी अब तो मान ले, या मनवा कि बात |
  जी  भर जाम पिलाय  दे ,  जागूँ  पूरी  रात  ||
५. साँस हमारी थम  गयी,  गयो  अँधेरा छाय |
  पिया मिलन के वास्ते, यम ने लियो बुलाय ||
६. कलम बेहया हो गयी, बिसरी छवि की नाइ|
किया जिकर मनमीत का, हर महफ़िल में जाइ||
७.छवि ने घोटी भंग जब, मदिरा दियो मिलाय| 
   प्रेम-नशा ऐसा चढा, चतुर्दिक छवि दिखाय ||
८. प्रेम  रंग  में  रंग गए ,  उसके  सारे  अंग |
    सकुचाई मनमीत को कियों ओम में तंग ||
 

No comments:

Post a Comment