Saturday, 25 February 2012

::होली विशेष ::

कृति - मोहित पाण्डेय "ओम"

रोज यही दोहराते है कि,
हमने उनको भुला दिया |
दुनिया वालो को अब हमने,
दिल का हाल बताना छोड दिया|

उनकी खातिर अब न पियेंगे,
हमने मैखाने जाना छोड दिया|
इश्क-ए-समंदर थाह लगाना,
यारों हमने दिल में उतरना छोड दिया|

होली की रूत आई जब,
उसने ने हमको बुला लिया|
उससे मिलवाने की खातिर,
विधिना ने क्या खूब प्रपंचन रचा दिया|

जीवन के रंग में रंग जाओ,
सबने हम दोनों को अकेले छोड़ दिया|
पर कैसे प्रेम-रंग डालूं उस पर,
जब हमने प्रेम में खुद को रंगना छोड़ दिया|

यारों मैखाना घर में ही बनाकर,
अब हमने मैखाना जाना छोड़ दिया|

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