कृति -'जीतेन्द्र गुप्ता '
ऐ मार्गदर्शक संसार के ,हुआ क्या है आज तुझे |
हम हैं बच्चे आपके , एक प्रश्न तुमसे पूछते |
चिर निराशा के भंवर में रौशनी थे तुम कभी|
जन्मदाता से भी बढकर प्यार करते थे कभी|
छात्रों के हित की हरदम बात तुम थे सोचते|
जब भी गलती होती हमसे प्यार से तुम टोकते |
होता न अर्जुन कहीं होते न द्रोणाचार्य जो|
ऐसे द्रोणाचार्यों को नमन बारम्बार हो|
क्यों रुठा है आज तू ,इतना तो हमको दे बता |
हमने कर डाली क्या कोई क्षमा न होती खता |
जिस गुरु ने दी थी शिक्षा मौत से न डरने की |
उस गुरु को देखकर क्यों होश उड़ जाते अभी |
बात करने में भी हम डरने लगे हैं आपसे |
होगा कैसे शंका का हल गर न बोलें नाथ से |
जिंदगी के मूल्यों को मत गिरा मेरे प्रभू |
बिन तेरे हम बेसहारा अनाथ हैं मेरे गुरु |
देख न हमको तू ऐसे ,हम नही दुश्मन तेरे |
हमको है तेरी जरूरत तू है दुखहर्ता मेरे |
तू गुरु है तू प्रभू है तुझको ही है सोचना |
सुनहरे भविष्य की खातिर है बीज तुझको रोपना |
सोने की चिड़िया बना दे ऐसा तू पारस बना |
इन्द्रियों को जीत ले जो ऐसे जितेन्द्रिय बना||
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