नम्र निवेदन
कृति: शिवम शुक्ल
एक नम्र निवेदन है तुमसे,
सुन लो पुकार इस धडकन की|
क्या तुम्हे शिकायत थी मुझसे?
जो दर्द दिया इस पागल को|
दिल के इक छोटे से कोने पर,
अधिकार तुम्हारा था शायद|
याद तुम्ही को करने की
हो गयी थी मुझको तब आदत|
भूलने के इस सतत प्रयास में,
याद तुम्हारी ही आती है|
अब तो बस तन्हाई के सहारे,
दिन और राते कट जाती है|
खैर मेरी फ़िक्र तुम छोडो,
दीवानों का तो ऐसा ही हश्र होता है
ना चाह कर भी याद करना,
नासमझ दिल तो हँस हँस कर रोता है||
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