Friday 13 January 2012

भ्रूण हत्या: एक अभिशाप

भ्रूण हत्या: एक अभिशाप 
कृति:
मोहित पाण्डेय "ओम" (Mohit Pandey)

हे जननी दोष क्या था उस अबोध का?      
जो जन्म उसे ना लेने दिया|
करुनामयी ममता की मूरत तू,
फिर भी क्यों उसको मार दिया?

ऐसी भी क्या विपत पड़ी?
जो खुद के खून का क़त्ल किया|
कोख में पलकर उसने भी कुछ सपने देखे होंगे,
फिर क्यों उसको अपने सपनो में रंग न तुमने भरने दिया?

 बेटे की चाह में अंधी होकर,
 खुद अपनी बेटी को मार दिया|
जितनी सेवा बेटा कर न सका,
बेटी उससे ज्यादा कर पायी है|

बेटी खुद होकर भी तू,
खुद बेटी को समझ ना पाई है|
तुमने शायद सोचा होगा,
बेटी आई तो बड़ी मुसीबत आएगी|
पर तुमने ये क्यों ना सोचा,
बिन बेटी स्रष्टि कैसे चल पायेगी?

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