कृति - जीतेन्द्र गुप्ता
"तेरी झील सी आँखों में डूब जाने को दिल चाहता है
तेरी लहराती जुल्फों में खुद को छिपाने को दिल चाहता है "
खोए रहते है तेरी ही यादों में
न होश में आने को दिल चाहता है |
तेरी ही खुमारी छाई है आठों पहर और
जहान को भुलाने को द्दिल चाहता है|
दुनिया जहान की जितनी भी खुशियाँ है
वो तुझपर लुटाने को दिल चाहता है |
भूल गए थे रास्ता कालेज के आने का
तेरे लिए कालेज आने को दिल चाहता है|
भूल गए थे हम किताबें क्या होती है
अब कुछ कर दिखाने को दिल चाहता है |
हर सफल इन्सान के पीछे एक नारी होती है
वो तुझको बनाने को दिल चाहता है |
तेरी ही सूरत है मंदिर की मूरत में
तुझे खुदा बनाने को दिल चाहता है |
नही जानते हम ये मोह है या प्यार है
सब तुझपर लुटाने को दिल चाहता है||
No comments:
Post a Comment