Sunday, 1 April 2012

"उलझन मंडप पे"

कृति -- मोहित पाण्डेय "ओम"

मेरे दिल में यारो एक उलझन बड़ी है |
न चाहा था हमने फिर भी मुसीबत खड़ी है...|
मुहब्बत थी जिससे हमको वो तो नहीं है|
वरमाला लिए एक अनजानी सी सूरत खड़ी  है|

रोका था बहुत सबको हम ये शादी न करेंगे|
अपनी आजादी को हम कुर्बान न करेंगे|
जो सामने है मेरे वो किसी की चाहत रही होगी|
उस शख्स को जख्म दे,खुद के जख्म न भरेंगे|

हम न जानते पहचानते दिल दे भी तो कैसे दे|
जिंदगी भर के साथ का वादा दे भी तो कैसे दे .
हम तो यहाँ मरते है हर पल याद में उसकी|
अपना बना उसे,पराया बन के धोखा, दे भी तो कैसे दे|



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