Saturday, 7 April 2012

"अम्मा"

कृति  -- मंटू कुमार

नज़र में रहती हो, पर नज़र नहीं आती अम्मा|
कहने को तो साथ है मेरे,पर अपनापन नहीं रहा अम्मा|
पहले एक-एक पल में थे कई जीवन|
अब जीवन में ढूढे एक पल,तेरे बिन अम्मा |
हम खुश रहकर मुस्काते थे,हमें देख मुस्काती थी  अम्मा |
ख्वाहिश नहीं रही अब पाने की कुछ|
तुम्हारी यादें ही काफी है अकेले में रोने के लिए अम्मा |
तुम्हारा न होना भी,होने का अहसास करा जाती है अम्मा|
उस जहान में तुम चली गई, हमें बुलाओगी कब अम्मा |
तुमने थे दिखाएँ जो सपने,बस उन्ही की खातिर जी रहे है अम्मा ||

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