कृति -- मोहित पाण्डेय"ओम "
इस रचना में मैंने एक प्रेमी और मदिरा के बीच हुए वार्तालाप को पिरोया
है| जब एक प्रेमिका अपने प्रेमी को
अपनी सहेली की हाथो ये संदेश भेजती है की अब उन दोनों के बीच सब कुछ खत्म
हो गया है,उसे अब उसकी जरुरत नहीं रही क्यूकि उससे अच्छा एक रिश्ता उसके
लिए आया है| वो उसे भूल जाये|
ऐसा पढकर उसका पूरा तन बदन सुन्न हो गया, वो खो गया उन पुरानी यादो में
जिनमे उन दोनो ने कभी साथ निभाने और संग जीने-मरने कि कसमें खायी थी,
आखिर एक पल में वो सारी कसमें झूठी वो गयी|
क्या उसका प्यार एक फरेब था?
पुरानी यादो की हिलोरो को अपने जेहन में समेटे हुए वो मैखाने की तरफ चल
पड़ता है| साकी से जाम लाने के लिए कहता है|
"साकी अब तो मान ले, या मनवा कि बात|
जी भर जाम पिलाय दे, जागूँ पूरी रात || "
साकी ने जाम भरकर रख दिया है, अब मदिरा और उसका वार्तालाप शुरू होता है|
इस रचना में मैंने एक प्रेमी और मदिरा के बीच हुए वार्तालाप को पिरोया
है| जब एक प्रेमिका अपने प्रेमी को
अपनी सहेली की हाथो ये संदेश भेजती है की अब उन दोनों के बीच सब कुछ खत्म
हो गया है,उसे अब उसकी जरुरत नहीं रही क्यूकि उससे अच्छा एक रिश्ता उसके
लिए आया है| वो उसे भूल जाये|
ऐसा पढकर उसका पूरा तन बदन सुन्न हो गया, वो खो गया उन पुरानी यादो में
जिनमे उन दोनो ने कभी साथ निभाने और संग जीने-मरने कि कसमें खायी थी,
आखिर एक पल में वो सारी कसमें झूठी वो गयी|
क्या उसका प्यार एक फरेब था?
पुरानी यादो की हिलोरो को अपने जेहन में समेटे हुए वो मैखाने की तरफ चल
पड़ता है| साकी से जाम लाने के लिए कहता है|
"साकी अब तो मान ले, या मनवा कि बात|
जी भर जाम पिलाय दे, जागूँ पूरी रात || "
साकी ने जाम भरकर रख दिया है, अब मदिरा और उसका वार्तालाप शुरू होता है|
ये कैसा नशा मुझ पर छाया,
जो न पिया अपने अधरों से |
होश-हवाश सुध-बुध खो बैठे,
इस मधुर पान की प्याली से||१
फिर भी कैसा नशा हुआ है,
हुए आज हम मतवारे से |
मदिरा-मय मस्त मगन बूंदे,
करती है निवेदन अधरों से ||३
ये जो नशा है तुम पर छाया,
पाया तुमने हरजाई से |
वफ़ा के बदले पाया क्या,
तू तड़प उठा बेवफाई से ||५
बस आज तू मुझको अपना बना ले,
मदिरा-मय मस्त मगन बूंदे,
करती है निवेदन अधरों से||
साथ में लेकर अपने चलना,
सुनकर दिल ने कड़क लगाई,
रिश्ता है तेरा मैखाने से|
दिल न लगाना तुम हमसे,
हम दीवाने है उसके ||८
दिल में तो वो 'छवि' बसी है,
वो अमृत का सागर है,
विष से है भरी तेरी प्याली|
वो पूनम के निशा सी उज्जवल है,
तू मावस की घोर घटा काली||१०
तू रक्त-तप्त डूबे सूरज सी,
माना की खफा है वो हमसे,
दूर न ज्यादा रह पाएंगे|
दौड़े आएंगे एक दिन,
फिर दिल से हमें लगाएंगे ||१२
उनकी अनुपस्थति में हम,
प्यारी मोहक मन-मादक,
मदिरा ने सुने जब प्रत्युत्तर|
सभी यहाँ दीवाने उसके,
आँखों में सभी की मद-लाली||१४
ये कैसा शख्स यहा पर आया,
तू कितने भी अश्रु बहा ले,
याद उसे न अब आयेगी |
जीवन भर तू आस लगा ले,
वो न वापस अब आयेगी ||१६
प्यार के सागर में तुमने,
गोते बहुत लगाएँ थे |
जिन-जिन को अपना समझा,
सब दिल में शोले भरने आए थें||१८
मदिरा-मय मस्त मगन बूंदे,
करती है निवेदन अधरों से|
................शेष जल्द ही ..
जो न पिया अपने अधरों से |
होश-हवाश सुध-बुध खो बैठे,
इस मधुर पान की प्याली से||१
धूम्रपान और मधपान हम,
सुनते आये थे कानो से |
छलक रही प्याली मदिरा की,
हमने न लगाया अधरों से ||२
फिर भी कैसा नशा हुआ है,
हुए आज हम मतवारे से |
मदिरा-मय मस्त मगन बूंदे,
करती है निवेदन अधरों से ||३
प्यारे खुद को सिंचित कर ले,
प्यारी मदिरा की सरिता से |
अपने गमो को कर दे प्रवाहित,
चंचल मतवाली लहरों से ||४
ये जो नशा है तुम पर छाया,
पाया तुमने हरजाई से |
वफ़ा के बदले पाया क्या,
तू तड़प उठा बेवफाई से ||५
बस आज तू मुझको अपना बना ले,
हर लूँगी व्यथा एक प्याली से |
साथ न तेरा मैं छोडूँगी ,
साथ न तेरा मैं छोडूँगी ,
वादा है रक्त-चमक मद-छलको से||६
मदिरा-मय मस्त मगन बूंदे,
करती है निवेदन अधरों से||
साथ में लेकर अपने चलना,
खेलेंगे चिता की लपटों से |
दिल की 'छवि' में मुझको बसा ले,
भर दूंगी दमन खुशियों से ||७
सुनकर दिल ने कड़क लगाई,
रिश्ता है तेरा मैखाने से|
दिल न लगाना तुम हमसे,
हम दीवाने है उसके ||८
दिल में तो वो 'छवि' बसी है,
जगह न तू ले पायेगी |
जी-जान से कोशिश करले,
जी-जान से कोशिश करले,
तू न भ्रमित हमें कर पायेगी||९
वो अमृत का सागर है,
विष से है भरी तेरी प्याली|
वो पूनम के निशा सी उज्जवल है,
तू मावस की घोर घटा काली||१०
तू रक्त-तप्त डूबे सूरज सी,
वो उगते भानु की लाली |
गर तू दुःख को मिटाती है,
गर तू दुःख को मिटाती है,
खुशियों से भरी वो हरियाली||११
माना की खफा है वो हमसे,
दूर न ज्यादा रह पाएंगे|
दौड़े आएंगे एक दिन,
फिर दिल से हमें लगाएंगे ||१२
उनकी अनुपस्थति में हम,
सौतन से दिल न लगाएंगे|
ऐसा अधरम करके हम,
खुद की नजरों में गिर जायेंगे||१३
प्यारी मोहक मन-मादक,
मदिरा ने सुने जब प्रत्युत्तर|
सभी यहाँ दीवाने उसके,
आँखों में सभी की मद-लाली||१४
ये कैसा शख्स यहा पर आया,
क्रोध से रक्तिम मद प्याली|
तीक्ष्ण नयन अरु मंदहास ,
कर्कश ध्वनि में मदिरा बोली||१५
तू कितने भी अश्रु बहा ले,
याद उसे न अब आयेगी |
जीवन भर तू आस लगा ले,
वो न वापस अब आयेगी ||१६
ऐसी उम्मीद तुझे न थी,
वो दिल के इतने टुकड़े कर डालेगी|
दामन थाम किसी जालिम का,
जला-जला तुझको मारेगी ||१७
प्यार के सागर में तुमने,
गोते बहुत लगाएँ थे |
जिन-जिन को अपना समझा,
सब दिल में शोले भरने आए थें||१८
कैसा जहर उसने दे डाला,
आँखों से अब तक निकल रहा है |
याद उसे कर-करके क्यों,
हर पल खुद को जला रहा है ||१९
दिल के दर्पण में देखो तो,
उसकी 'छवि' ही प्रतिबिंबित है |
मन-मानस में जो फूल खिले है,
सब मेरे नयनों से सिंचित है ||२०
हमने किसी का क्या बिगाड़ा,
ये कैसी सजा अब मिल रही है |
जिसने हमारा हाथ थामा,
अब वो रेत बनकर दूर हमसे हो रही है ||२१
मै कैसे तुमको खुद में बसा लूँ,
कैसे तुम्हे अपना बना लूँ |
इस दिल में जब चिंगारी उठी है,
कैसे अब उसको बुझा दूँ ||२२
मै नागमणि था, अब मणि
क्यूँ दूर जाना चाहती है |
निस्तेज विषधर को अभी भी,
क्यूँ तू सोमरस पिलाना चाहती है ||२३
मदिरा-मय मस्त मगन बूंदे,
करती है निवेदन अधरों से|
................शेष जल्द ही ..
बहुत अच्छी प्रस्तुति!...
ReplyDeleteबहुत खूब ...
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