Tuesday 14 August 2012

"ये दिल काँच का टूटा"

कृति - मोहित पाण्डेय"ओम"

इतना टूटा हूँ मैं , न अब कोई तोड़ पायेगा |
ये दिल काँच का टूटा, जिसे न कोई जोड़ पायेगा ||
कितनी भी कोशिशें, कोई भी अब तो कर ले|
बर्बाद रास्तों से हमें, न कोई मोड पायेगा ||

हमनें कभी न सोचा, ऐसा भी वक़्त आयेगा |
जो मुझको अपना कहता था, गैरों का हो जायेगा ||
कितनी बड़ी थी साजिश, जिसे हम समझ न पायें||
ये जो तूफां है मेरे दिल में, यें कही कहर ढाएगा||

मेरा दिल तो जल रहा है, वो यादों में कभी जलेगा |
जिन्दा था अब तलक मै, अब कोई मारने को आयेगा ||
सब लोग कल तो आना, मातम मनेगा मेरा |
मेरी मौत पे वो हंसकर, गैरो के संग जश्न मनाएगा ||

इतना टूटा हूँ मैं , न अब कोई तोड़ पायेगा |
ये दिल काँच का टूटा, जिसे न कोई जोड़ पायेगा ||

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