Thursday, 2 August 2012

"हँसने की कोशिश करते है"

कृति -- मोहित पाण्डेय"ओम"


गम के सागर में डूबे रहते है,
फिर भी हँसने की कोशिश करते है|
ये जमाना अगर हमसे रूठे भी तो,
हम तो अपने ही जलवे में रहते है ||

उनको नफरत है हमसे तो हम क्या करे,
हम तो अब भी मोहब्बत करते है |
कोई पागल कहे, आवारा कहे,
उनकी गलियों में जाया करते है||

तुम दीवानों की बातें मत करना,
वो तो मर के भी जिन्दा रहते है|
कभी उसने हमें अपना माना था,
हम तो अपनों को दिल में रखते है||

है वो पागल जो गैरो पे मरते है,
हम तो अपनों कि खातिर जीते है|
मेरी आँखों में आँसू रहते है,
फिर भी हँसने की कोशिश करते है||
गम के सागर में डूबे रहते है ...........

3 comments:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (04-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  2. वाह ... बेहतरीन

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  3. सुंदर रचना...
    सादर।

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