मोहित पाण्डेय "ओम"
शायद ही कोई शक्सियत जी पायेगी |
उनके होंठों से जाम हमने पिया ,
हमें न अब कोई दूजी जाम भाएगी ||
वो तो चले गए हमें मदहोश करके,
मगर उनसे जुदाई और गम-ए-उल्फत में ये जान चली जायेगी|
मगर अफ़सोस, तब ये मदहोशी हमेशा की हो जायेगी |
गर फक्र है, कभी हमारी भी इश्क-ए-दास्ताँ इबारत पढ़ी जायेगी ||
२. इतना मत सताओ हमें, हम तेरा शहर छोड़ जायेंगे |
जान मांग कर के तो देख, तेरी ही चौखट पे दम तोड़ जायेंगे|
दीवाने तो मरते ही है यहाँ, पर हम अपनी आशिकी की एक मिशाल छोड़ जायेंगे |
फिर अपनी मोहब्बत का इजहार मत करना, क्यों कि कब्र में दफ़न हम दिल्लगी कर न पाएंगे
३. सोचा था मुहब्बत न करेंगे, क्यों कि इसमें दर्द-ए-सुरूर होता है|
फिर दिल ने आवाज दी लगा ले दिल, बिना दिल्लगी के कौन यहाँ मशहूर होता है||
No comments:
Post a Comment