Thursday, 31 May 2012

"फिर से-लंबी रातें उसकी यादें"

"फिर से-लंबी रातें उसकी यादें"

कृति- मोहित पाण्डेय"ओम"

फिर से आज एकाकीपन है,
फिर से रोया ये तन मन है|
फिर  से   रात  नहीं  गुजरी,
यादो  से आंखे फिर नम है||

फिर से मैं खुद को भूल गया,
उन  लम्हों में फिर डूब गया|
फिर से मैं  इतना  टूट  गया, 
वो शक्स हमें फिर लूट गया||

फिर  से  ये  रात  सुहानी  है,
फिर  से  पूनम की चांदनी है,
वो  रातें   कितनी  छोटी  थी,  
इतनी लंबी रातें हमने अब जानी है||

फिर  से  मेरा  मन  पागल है,
उस छवि को फिर से ढूढ रहा|
कैसे  समझाऊ  मैं  खुद  को,
जो   मेरा  था अब वो न रहा||
 
वो मुझको अपना कहता थी, 
हर पल  संग  में  रहती थी|
गर   चोट हमें लग जाती थी,
तो दर्द के आँसू वो रोती थी||

फिर क्यों आज हमें वो छोड़ गयी,
क्यों  हर  नाते हमसे  तोड़ गयी|
ये    दिल  भी  तो  तुम्हारा  था,
क्यों फिर इसको तनहा छोड़ गयी||

ये रातें कितनी लंबी है, क्यों हमको अकेला छोड़ गयी||


No comments:

Post a Comment