"फिर से-लंबी रातें उसकी यादें"
कृति- मोहित पाण्डेय"ओम"
फिर से आज एकाकीपन है,
फिर से रोया ये तन मन है|
फिर से रात नहीं गुजरी,
यादो से आंखे फिर नम है||
फिर से मैं खुद को भूल गया,
उन लम्हों में फिर डूब गया|
फिर से मैं इतना टूट गया,
वो शक्स हमें फिर लूट गया||
फिर से ये रात सुहानी है,
फिर से पूनम की चांदनी है,
वो रातें कितनी छोटी थी,
इतनी लंबी रातें हमने अब जानी है||
फिर से मेरा मन पागल है,
उस छवि को फिर से ढूढ रहा|
कैसे समझाऊ मैं खुद को,
जो मेरा था अब वो न रहा||
वो मुझको अपना कहता थी,
हर पल संग में रहती थी|
गर चोट हमें लग जाती थी,
तो दर्द के आँसू वो रोती थी||
फिर क्यों आज हमें वो छोड़ गयी,
क्यों हर नाते हमसे तोड़ गयी|
ये दिल भी तो तुम्हारा था,
क्यों फिर इसको तनहा छोड़ गयी||
ये रातें कितनी लंबी है, क्यों हमको अकेला छोड़ गयी||
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