कल शहर के राह पर मैंने भीड़ देखा था ,
जहाँ एक नवजात कन्या को उसकी माँ ने फेंका था ,
मै बेबस था चुपचाप था बहुत परेशान था ,
मै उस नवजात की माँ की ममता पे बहुत हैरान था ,
मै कुछ नही कह सकता था उस भीड़ से , क्युं कि मै भी एक इंसान था ,
पर क्या उस कुछ देर पहले जन्मी बच्ची का नही कोई भगवान था ??
क्या उस माँ की कोख ने उस माँ को नही धिक्कारा होगा ?
क्या उस नवजात की चीख ने उस माँ को नही पुकारा होगा ?
आखिर क्यूँ जननी काली से कलंकिनी बन जाती है ?
जन्मती है कोख से और फिर क्यूँ कूड़े पे फेंक आती है ?
गर है ये एक पाप , तो क्यूँ माँ करती है उस पाप को ?
क्या शर्म नही आती उस बच्ची के कलंक कंस रूपी के बाप को ?
बिलखते हैं, चीखते हैं मांगते हैं रो-रो कर भगवान से ,
जो की दूर हैं एक भी संतान से ,
उस नवजात को मारने की वजह बढती हुई दहेज तो नही ?
कुछ बिकी हुई जमीरों के लिए लकड़ियों की कुर्सी मेज तो नही ?
कुछ बिके हुए समाज के सोच की नग्नता का धधकता तेज तो नही ?
इस नवजात की मौत की वजह किसी के हवस की शिकार सेज तो नही ?
बस एक बात पूछता हूँ उस समाज से , उस माँ से ,और उस भगवान से
क्यूँ खेलते हों मूक निर्जीव सी नन्ही सी जान से ??
आखिर क्यूँ मानवता पे यूँ गिरी है ये गाज ?
जिस माँ ने फेंका था उस नवजात को, उसी माँ से पूछना चाहता हूँ मै आज ..
क्या तुमने ऐसा अधम कुकृत्य किया होता ?
अगर तुम्हारी माँ ने भी तुम्हे अपने कोख से निकाल फेंक दिया होता ???????
Rajeev Kumar Pandey " Mahir "
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
ReplyDeleteआपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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