Sunday, 14 April 2013

"एकमात्र संतोष "


कृति- “जीतेन्द्र गुप्ता”

वर्षों से खुलकर  नहीं हंसा
पर सिसक सिसक रोया तो है
तसवीर तेरी दिल में रखकर
तेरे सपनों में खोया तो है
सच्चाई  में तो मिली नही
पर सपनों में आई तो है
तेरी हर एक याद संजोकर
दिल में दफनाई तो है
जिन्दा रहते तो मिली नहीं
पर मुझको अब संतुष्टि ये है
मेरी लाश पर अश्क बहाने
देखो वो  आई तो है....... 

Sunday, 10 March 2013

कृति 'जीतेन्द्र गुप्ता '
बेकारी के आलम में ,लगता है हम भी खो जाएँ
रहने दें दुनिया जैसी है, दुनिया से बेसुध हो जाएँ |
बड़े कंटक हैं हर पग -पग में, इस जग सुधर के मारग पर
बड़े संकट हैं इस भारत में, हर दिल में बसा है भ्रष्टाचार
खड़े विषधर  है हर चौखट पर, कह रहे हैं वो ये पुकार पुकार
हम भले जगत से मिट जाएँ, मिटने ना देंगे भ्रष्टाचार ||
कहती है भारत माँ प्यारी, तुम हो मेरे कैसे सपूत !
जो बेच रहे हो खुद माँ को, अब तो सुधारों काले कपूत|
प्रण लो प्यारों अब इसी वक्त, खोया गौरव तुम लाओगे
बिलख रही है माँ प्यारी, इसे भ्रष्टाचार मुक्त कराओगे
यह ही है जननी हम सबकी, इसे जगद्गुरु तुम बनाओगे||